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शनिवार, फ़रवरी 10, 2018

मौन...पहाड़ का


नग्न काया
परवत की
बज रहा
संगीत 
पतझड़ का
कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है 
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का
सिकुड़कर 
लाज से
सिसकते सिकुड़ी सी 
नदी
जंगल तोड़ रहे
मौन...पहाड़ का
और नदी के
छल-छलाने की
आवाज भी
भंग करती है मौन 

शुक्रवार, जनवरी 26, 2018

बावरी कोयलिया....


मद भरी मादक 
सुगन्ध से 
आम्र मंजरी की
पथ-पथ में....
कूक कूक कर
इतराती फिरे
बावरी
कोयलिया....
है जाती
जहाँ तक नजर
लगे मनोहारी
सृष्टि सकल
छा गया
उल्हास....चारों 
दिशाओं में
री सखि देखो
बसन्त आ गया

शुक्रवार, जनवरी 19, 2018

वही वो मुंआ बवाल


कह दी बात
खुल के
बात अपने 
दिल की
तो हो गया बवाल.....
तलाशते हो
यहां - वहां
रोज बाते चटपटी 
मुहब्बत की 
आँखें ने...जो 
कही.. तो हुआ 
वही.....जिसका 
था.....अंदेशा 
काफी भारी.....हुआ 
बवाल.....
लिहाज कर गए 
बड़ों का
झुका कर....आँख
तो हो गया...वही
घिसा-पिटा सा
बवाल.....
किया सवाल
डालकर आँखें
आखों में
कहलाई मैं
बवाली.....सोचा हमने
कि होगा कहा धोखे से
बावली की जगह
बवाली....पूछ लिया
तो हो गया....वही
वो मुंआ बवाल

शुक्रवार, जनवरी 12, 2018

रात थी पूस की....


पुराने खण्डहर में
तिरपाल डाल कर
बैठे हुए लोग

करते थे कुछ बतकही
कुछ अनकही
संझा घिर आई

पूस का महीना
काटनी थी रात लम्बी
उठे कुछ लोग......
लाए ढूंढकर....
मोटी पतली लकड़ियां
जलाई आग....
इस पुराने खण्डहर में
मिल गई कुछ
टूटी खाट....
लाकर डाल दिया
आग में और
बना दिया धूनी को
धधकता अलाव...
रात थी पूस की
पर लग रही थी
बैसाख सी....
पड़ाव किया था...
गुजारने के लिए रात
और करनी थी प्रतीक्षा
सुबह की... 
हमने बुझने नही दिया अलाव
काट ली रात
हंसते गाते....